जिंदगी के अनमोल रिश्ते

जन्म होते ही बनते रिश्ते
जिंदगी के अनमोल रिश्ते
पालने में झुलता बचपन
नए रिश्ते संजोता बचपन

औलाद बनकर जन्म लिया
संग कई रिश्तों को जन्म दिया
पाकर तुझको सब हुए प्रसन्न
खुशियों से भर गया आंगन

फिर स्कूल पहुंचा जब बचपन
दोस्ती की ओर बढ़े तेरे कदम
रबर पेंसिल को हर पल झगड़े
पर छुट्टियों में मिलने को तरसे

फिर आगे बढ़े जब तेरे कदम
जग ने जोड़ा एक नया बंधन
दामपत्य जीवन में होकर मग्न
चल दिये एक दूजे के संग

फिर समय ने खुद को दोहराया
दे औलाद अब तुझे मां बाप बनाया
अब बुढ़ापे की ओर बढ़ाए कदम
नाती पोतों में तुम हुए मग्न

सुख दुख से भरा ये जीवन
अनमोल रिश्तों में रहे मग्न
ऐसे ही बढ़ता जाए ये जीवन
नए रिश्तों का है ये संगम

सोचा था जैसा वैसा कुछ न हुआ

सोचा था जैसा वैसा कुछ न हुआ
जब जीवनसाथी ही अपना न हुआ
जानें क्यों दिखाए सपने थे उसने
जब खुद न समझे घर कैसे हैं बसते

बड़े प्यार से हाथ मेरा था उसने थामा
कहा अब मुझे ही साथ तेरा है निभाना
फिर क्यों न टिका अपनी बातों पर वो
हे ईश्रर ऐसी सजा किसी को भी न दो

जब यही लिखा था किस्मत में मेरी
तो क्यों सपनों की बारिश थी करी
अगर यही प्यार  है तो बस दुआ है मेरी
दोबारा ऐसा प्यार देना न किसी को कभी

लड़की ने तोड़ी अपनी पुरानी सब कड़ी
हाथ पकड़ एक अंजाने के संग चल पड़ी
विश्वास कर साथ उसके वो अब खड़ी
बिना सोचे  आगे आएगी कैसी अब घड़ी

अब सोचती हुं गलती ऐसी भी थी क्या करी
जो खुशियां मिल न पाई संग उसके कभी
आखिर उम्मिदें उससे ही तो थी बंधी
फिर किस गलती की सजा मुझको है मिली

अंत तो क्या होगा जाने न कोई कभी
ईश्वर ऐसा किसी के साथ न हो कभी
बस अब विनती तुझसे है यही मेरी
ऐसी जिंदगी देना न किसी को कभी

मैंने सोचा न था

जिंदगी का रुख यूं बदल जाएगा
मैंने सोचा न था
वक्त मेरा यूं बदल जाएगा
मैंने सोचा न था
कल तक चली थी जिन सपनों की
डोरी को थाम
कभी वो सपना भी बदल जाएगा
मैंने सोचा न था

बैठे बैठे मैंने भी थे कई
सपने बुने
सोचा था कांटों के बीच
फूल हम भी चुने
पर जिस बागबान की ओर
थे हम चले
उसका रास्ता भी युं बदल जाएगा
मैंने सोचा न था

सब कहते थे देख मेहनत मेरी
कल तू भी कुछ करेगी
अगर ऐसी ही लग्न के साथ
इस पथ पर चलेगी
हर दिन करी तैयारियां
कि उस लक्ष्य को पा हम सके
पर वो लक्ष्य ही यूं बदल जाएगा
मैंने सोचा न था

आज हुं निराश अगर तो
कसूर है सिर्फ मेरा
मंजिल थी सामने उसे खुद
से ही न कह दिया
तो दोष अब इसमें किसी का है कहां
बस सोचती हुं यही आज
मेरा वक्त यूं बदल जाएगा
मैंने सोचा न था
वो लक्ष्य यूं छिन जाएगा
मैंने सोचा न था

एक पल में सब कुछ बदल गया

बंधी एक अनदेखी डोर ऐसी
अब जिंदगी रही न पहले जैसी
एक पल में सब कुछ बदल गया
लोग कहते हैं तेरा ब्याह हो गया

महिनों चलती रहीं तैयारियां
लगती रहीं बुझती रहीं चिंगारियां
आखिर दिन आ गया जिसके लिए
माता पिता ने खूब पसीना बहाया

खिले खिले चेहरे दिखने लगे
चहकते हुए भाई बहन घूमनें लगे
द्वारे ढ़ोल बाजों संग आई बारात
पिता करे स्वागत ले फूलों का हार

आखिर आ ही गई अब वह घड़ी
जिसकी चाहत थी सबको बड़ी
दुल्हन दुल्हे संग  जयमाल लिए खड़ी
धड़कनें दोनों की ही थी बढ़ी

जयमाल संग खूब डीजे बजा
जमकर लोगों के बीच नाच हुआ
खा पीकर सब रहे मग्न
ऐसा रहा अभी तक का जश्न

अब रात जैसै जैसे आगे बढ़ने लगी
रस्मों की भी लगने  लगी झड़ी
दुल्हन पीली पचिया पहने थी खड़ी
मां बाप ने कन्यादान की रस्म अदा करी

फिर फेरों की शुरुआत हुई
दुल्हे संग दुल्हन थी अब चली
कर फेरे पूरे दुल्हे ने मांग जब भरी
वहीं से बिटिया फिर किसी की पराई हुई

अब आ ही गई बिदाई की वह घड़ी
जब आखें सबकी नम होने लगीं
पापा संग मां एक कोने में रोती हुई खड़ी
रोए भाई बहन भी याद कर बचपन की हर घड़ी

लड़की अब ससुराल की ओर है बढ़ी
सब दे दुआएं बेटी सुखी रहो तुम बड़ी
पर हो पाएगा जग में ऐसा तभी
जब बहु को भी बेटी मानेंगे सभी


लड़की की जीवनकथा


मां की लाखों दुआओं में एक
दुआ होती हैं बेटियां
कोख का उसकी अनमोल
तोहफा होती हैं बेटियां

पैदा होते ही मोह के बंधन
बांधने लगती हैं बेटियां
मां बाप की आंखो में सपने बन
जीने लगती हैं बेटियां

बचपन में बाबुल के आंगन की
खुशहाली होती हैं बेटियां
ब्याह कर दूसरे आंगन की
तुलसी बनती हैं बेटियां

अब तक जो भाई बहन से
लड़ती रहती हैं बेटियां
वही ननद देवर को भाभी बन
समझाने लगती हैं बेटियां

बड़ी होते-होते पराई
होने लगती हैं बेटियां
जीवन के नए बंधनों को
संजोने लगती हैं बेटियां

दुनिया की रीत को न
समझ पाती हैं बेटियां
सच है इतना यही कि
पराया धन होती हैं बेटियां

आम हो चुका भारतबंद

आम हो चुका भारतबंद

हाल ही में हमने 2 अप्रैल व 10 अप्रैल के भारत बंद के बारे में देखा - पढ़ा। 2 अप्रैल को दलितों ने भारत बंद किया था। यह 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के विरोध में था , तो 10 अप्रैल  को सवर्णों ने आरक्षण के विरोध में भारत बंद कराने की कोशिश की। भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां सबको अपने हिसाब से जीने की आजादी है। वहीं कुछ लोग अपने फायदे के किए भारत बंद कर पूरे समाज के विकास में रोड़ा बनने का प्रयास करते हैं। ऐसी घटनाएं लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय है। आखिर ये लोग देश को किस ओर ले जा रहे हैं, यह आमजन की समझ से परे है।

20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एससी – एसटी एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगाने का आदेश दिया था। आदेश के अनुसार इस एक्ट में अब गिरफ्तारी से पहले जांच - पड़ताल के बाद ही कार्रवाई की जाएगी । लेकिन यह बात दलित समुदाय को रास नहीं आई। फैसला आने के बाद से ही  पूरे समुदाय में आक्रोश पनपने लगा जिसका हिंसक रूप 2 अप्रैल को देखने को मिला। इस हिंसक बंद का असर राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार, पश्चिमी उत्तरप्रदेश सहित लगभग 14 राज्यों में अधिक दिखा। इस हिंसा का खामियाजा 11 लोगों को  अपनी जान गंवा कर चुकाना पड़ा और सरकारी संपत्तियों का जो नुक्सान हुआ सो अलग। यहां लोगों में आक्रोश इतना ज्यादा था कि वे कानून जाए भाड़ में नारे के साथ दुकानों में आगजनी और तोड़फोड़ बेखौफ करते रहे। निश्चित ही उन लोगों का यह कृत्य निंदा के योग्य था। प्रदर्शनकारियों में न तो कोई संवेदनशीलता थी न ही किसी का भय। वे तो बस अपनी बात मनवाने के लिए किसी भी हद तक जाने को आमादा थे। इन सबके बीच अगर कुछ अजीब था तो वह सरकारों का रवैया।
यह बात सभी जानते हैं कि एससी-एसटी एक्ट की बात जब आती है तो सभी सरकारें बेबस हो जाती हैं । उनकी चुप्पी साफ - साफ यह दर्शाती है कि उनके लिए वोट बैंक ही सर्वोपरि है। वह बस अपने वोटों की गिनती पकड़े बैठे रहते हैं। सरकार की यही बेबसी 2 अप्रैल को भी देखने को मिली । धारा 144 लागू होने के बावजूद उग्र प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने जमकर तांडव मचाया, लेकिन सरकारों की तरफ से कोई भी सख्त प्रतिक्रिया न आना आश्चर्यजनक था। 

गौरतलब है कि एससी- एसटी एक्ट अधिनियम 1989 का मुद्दा कोई पहली बार नहीं उठा है। इससे पहले सन् 2007 – 2012 में जब उत्तरप्रदेश में मायावती की सरकार थी तब भी इस एक्ट के दुरुपयोग को रोकने पर जोर दिया गया था। मायावती की सरकार ने पुलिस को एक्ट का सही उपयोग हो, इसके लिए सख्त हिदायत दी थी। साथ ही गलत जानकारी देने पर भारतीय दंड सहिता की धारा 182 के तहत पुलिस को कार्रवाई करने के निर्देश भी दिए थे। ऐसे में इस समुदाय को उस समय कोई परेशानी क्यों नही हुई थी। तब में और आज में क्या अंतर था अब ये तो समझना मुश्किल है।  वहीं इससे यह बात भी उभर के आती है कि इन सबके पीछे कोई राजनीतिक मंशा तो नहीं है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि दलित समाज भी देश में बराबरी का अधिकार रखता है उसके साथ अन्याय नहीं होना चाहिए। लेकिन ऐसे में इस का ख्याल रखा जाना भी जरूरी है कि वह उन्हें मिली सहूलियत का कोई भी नाजायज़ फायदा न उठाए।


दलित समुदाय की देखादेखी सवर्णों ने भी भारत बंद कर आरक्षण के खिलाफ प्रदर्शन किया। 2 अप्रैल की ही तरह 10 अप्रैल को भी लोग अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतर आए। इन लोगों ने भी वही भयावह रूप अपनाया। दुकानों में आगजनी, तोड़फोड़ कर लोगों को डराना धमकाना, दुकानों को जबरन बंद करवाने के साथ ही सड़कों पर हिंसा करते दिखाई पड़े। इस प्रदर्शन का सबसे ज्यादा असर बिहार के आरा में अधिक दिखा। यहां भी आरक्षण के नाम पर एक समुदाय दूसरे समुदाय से भिड़ा जा रहा था और सरकार चुप्पी साधे बैठी रही। इस दिन भी धारा 144 लागू होने का कोई फायदा नहीं दिखा। ऐसी पस्थितियों को देखते हुए लगता है कि देश के कानून के कोई मायने हैं भी या नहीं ? लोग कानून की परवाह किए बिना बस अपनी मनमानी क्यों करते रहते हैं और सरकारें खामोश क्यों रहती है।


भारतबंद मानो आम हो चुका है, जैसे अपनी बात रखने का यही एकमात्र जरिय़ा बचा हो। अगर किसी को भी अपनी कोई भी बात मनवानी हो तो वो भारतबंद की तलवार उठा लेता है । लोकतंत्र हमें अपनी बात रखने की आजादी देता है। सभी को अपनी मांगे सरकार के सामने रखने का पूरा अधिकार है। लेकिन कुछ लोग उस आजादी का नाजायज फायदा उठाते हैं। उसका एक उदाहरण दोनों भारतबंद की घटनाएं  हैं। अगर देश में हर कोई अपनी बात मनवाने के लिए हिंसा की राह पर चलेगा, लोगों की जान लेगा , सरकारी संपत्ति को नुक्सान पहुंचाएगा तो देश किस ओर जाएगा ? इसीलिए समय रहते ऐसी प्रवृत्तियों पर रोक लगाना आवश्यक है नहीं तो यह प्रवृत्तियां अपने फायदे के लिए आने वाली पीढ़ी को भी इसी आग में जलाती रहेंगी।


क्रिकेट से जुड़े अपराधों के लिए आईसीसी का सख्त होना जरूरी


क्रिकेट से जुड़े अपराधों के लिए आईसीसी का सख्त होना जरूरी

भारत देश में अगर खेल की बात करें तो क्रिकेट सबसे लोकप्रिय खेल है। यहां पर लोग क्रिकेट प्लेयर्स के फैन ही नहीं हैं , बल्कि उन्हें पूजते भी हैं। हालांकि क्रिकेट को लेकर उत्साह किसी एक देश तक सीमित नहीं है। भारत की ही तरह ऑस्ट्रेलिया में भी क्रिकेट सबसे लोकप्रिय खेल है। लेकिन हालही में सामने आए बॉल टेंपरिंग के मामले से क्रिकेट जगत में हड़कंप मच गया है। इस घटना ने क्रिकेट के प्रति लोगों के विश्वास को भी चोंट पहुंचाई है।

खेल चाहें कोई भी हो उसके लिए यह जरूरी है कि खिलाड़ी उसे निष्पक्ष रूप से खेले क्योंकि उनपर दर्शकों का पूरा भरोसा टिका होता है। यदि ऐसा नहीं होता है तो ये दर्शकों और उसके प्रशंसकों के साथ विश्वासघात होगा। वहीं दर्शकों के साथ कुछ ऐसा ही विश्वासघात ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों ने बॉल टेंपरिंग कर किया है। दक्षिण अफ्रिका और ऑस्ट्रेलिया के मध्य टेस्ट मेच के दौरान बॉल के साथ छेड़छाड़ की जाने की घटना सामने आई थी। जिसके जिम्मेदार टीम के कप्तान स्टिव स्मिथ, उपकप्तान डेविड वार्नर व खिलाड़ी केमरन बेनक्रॉफ्ट निकले थे। खेल के दौरान बेनक्रॉफ्ट ने बॉल को टेप से रगड़कर उसके साथ छेड़छाड़ की थी। इस आरोप के बाद  स्टीव स्मिथ और डेविड वॉर्नर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। साथ ही कप्तान स्मिथ ने यह माना भी कि इसमें  उनकी टीम शामिल थी । इस घटना ने क्रिकेट प्रेमियों के दिलों को आघात पहुंचाया है। चूंकि दर्शक पूरे विश्वास के साथ खेल को देखते हैं उनके लिए खेल रहे खिलाड़ी उनके ऑयडल होते हैं,  तो इस घटना से उनका नाराज होना भी स्वाभाविक है।

बॉल टेंपरिंग की घटना की वजह से ऑस्ट्रेलिया टीम की साख पर बट्टा लगा है। खिलाड़ियों के इस कृत्य की वजह से वह फैंस की नजर में विलेन बन गए हैं। और ऐसा हो भी क्यूं न आखिर उनकी वजह से क्रिकेट प्रेमियों की भावनाओं को ठेस पहुंची है। हालांकि कप्तान स्टिव स्मिथ ने अपनी गलती को स्वीकारते हुए ट्वीट कर फैंस से माफी भी मांगी है। लेकिन इससे वह उनके टूटे विश्वास को नहीं जोड़ा जा सकता है।

वहीं इस मामले के लिए जिम्मेदार सभी खिलाड़ियों  के लिए क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया (सीए) ने सजा निर्धारित कर एक उदाहरण पेश किया है। इससे उन्होंने सभी को चेताया है कि भविष्य में यदि कोई ऐसी कोई भी घटना को अंजाम देता है तो वह भी सजा का पात्र होगा। और ऐसा किया जाना भी जरूरी था ताकि दोबारा कोई ऐसी गुस्ताखी न करे।

सीए ने बॉल टेंपरिंग करने पर कप्तान स्टिव स्मिथ और उपकप्तान डेविड वार्नर को सजा के रूप में पूरे एक साल के लिए बैन लगाया गया है। वहीं गेंद से छेड़छाडं करते पाए गए केमरन बेनक्राफ्ट को नौ महीनों के लिए प्रतिबंधित किया है। सजा के अनुसार इन तीनों पर प्रतिबंध की अवधि के दौरान अंतरराष्ट्रीय और घरेलू क्रिकेट खेलने पर प्रतिबंध रहेगा। लेकिन अपनी फिटनेस और मैच प्रैक्टिस को बनाए रखने के लिए इन्हें क्लब क्रिकेट खेलने की अनुमति दि गई है।इसके साथ ही इनको प्रतिबंध के खिलाफ अपील करने के लिए सात दिन का समय भी दिया गया है। वहीं इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) ने तीनों खिलाड़ियों पर एक मैच को बैन लगाया है। साथ ही स्मिथ, वार्नर पर मैच का 100 फीसदी और बेनक्राफ्ट पर 75 फीसदी जुर्माना लगाया है। वहीं दो साल का बैन झेलने के बाद राजस्थान रॉयल्स आईपीएल में वापसी कर रही है, जिसकी कप्तानी स्टिव स्मिथ को मिली थी। लेकिन बॉल टेंपरिंग विवाद के चलते उन्हें इससे भी हाथ धोना पड़ा।

क्रिकेट की दुनिया में आए बॉल टेंपरिंग के तूफान के बाद आखिरकार आईसीसी भी अब कड़ा रुख इख्तियार करने जा रही है। आईसीसी ने अब क्रिकेटरों को सजा देने के नियमों में बदलाव करने का फैसला किया है।खबरों के मुताबिक आईसीसी के मुख्य कार्यकारी डेव रिचर्डसन ने तमाम बोर्ड्स को चिट्ठी लिखकर कर जल्द क्रिकेट कमेटी की मीटिंग बुला नियमों में बदलाव करने की बात कही है। इसमें मौजूदा और पुराने क्रिकेटर्स को भी शामिल किया जाएगा।

टेस्ट क्रिकेट के 141 साल पुराने इतिहास में यह पहली बार होगा जब इस तरह की मीटिंग बुलाई जाएगी। बॉल टेंपरिंग को आईसीसी के कोड ऑफ कंडक्ट में लेवल टू का अपराध माना जाता है। वहीं अब वह इसे और अधिक गंभीर अपराध की श्रेणी में शामिल करने पर विचार कर रही है ताकि इसमें शामिल क्रिकेटर्स के लेए कड़ी सजा निर्धारित की जा सके। क्रिकेट को लेकर अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं। इसीलिए समय रहते इसके लिए आईसीसी का सख्त होना जरूरी है। ताकि अक्सर फैंस के विश्वास के साथ हो रहे खिलवाड़ को रोका जा सके।










कानपुर का जाम है आम


कानपुर का जाम है आम

कानपुर में रोजमर्रा की समस्या की बात करें तो समस्याओं की कमी नहीं  है। फिर वह चाहे गंदगी हो या प्रदूषण सभी अपने चरम पर हैं। वहीं कानपुर की समस्याओं में  एक बड़ी समस्या जाम की भी है। कानपुर के रास्तों पर जाम तो अब आम होता जा रहा है। यहां के लगभग हर रास्तोंहर चौराहों पर लोगों को इस समस्या का सामना तो करना ही पड़ता है। यूं भी कह सकते हैं कि जाम तो अब लोगों की रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बनता जा रहा है। लोग सुबह घरों से निकलने के पहले ही सोच लेते हैं कि रास्तों पर उन्हें जाम का सामना तो करना ही पड़ेगा। जाम की परेशानी इतनी ज्यादा है कि लोग इससे छुटकारा पाने की कल्पना भी नहीं करते हैं। वहीं प्रशासन भी इसके लिए इतना सक्रिय नहीं दिखता हैजितनी की जरूरत है।


हालांकि जाम की समस्या के लिए केवल प्रशासन ही नहीं जिम्मेदार हैबल्कि स्थानीय लोग भी इसके बराबरी से भागीदार हैं। कोई भी परेशानी हो उसको लिए हम सीधे प्रशासन को ही दोषी ठहराने लगके हैं। लेकिन रास्तों पर जाम लगाने प्रशासन तो नहीं आता है। जाम तो रास्तों पर आने जाने वाले लोगों की वजह से ही लगता है। यदि वह यातायात नियमों का सही से पालन करे तो श यद उन्हें इतनी परेशानियों का सामना न करना पड़े। वर्किंग डेज की बात करें तो रोज सुबह लोग  ऑफिस और स्कूल के लिए निकलते हैं, सब बहुत जल्दी में भी होते हैं। वहीं  लोगों की यही जल्दबाजी इस समस्या को और भी बढ़ा देती है।


कहां कहां जाम लगता है -

अगर रास्तों पर जाम की बात करें तो कुछ इलाकों में जाम की परेशानी चरम सीमा पार कर चुकी है। जिनमें अफीम कोठी चौराहाजरीब चौकीरावतपुर शामिल हैं। इन सभी जगहों पर ऐसा कोई भी दिन नहीं होता हैजिस दिन जाम न लगे। वहीं फजलगंजचुन्नीगंज जैसे रास्तों पर हर रोज सुबह लगभग फैक्ट्री जाने वालों का आना जाना अधिक होता है। वहीं इन रास्तों पर भी अक्सर जाम लगा रहता है। वहीं दक्षिण में अगर बात करें तो नौबस्तारामादेवीहमीरपुर रोड पर रोजाना सुबह से ही जाम लगने लगता है। हमीरपुर रोड व रामादेवी पर ट्रकों का आवागमन अधिक होता है इसीलिए  इन रास्तों पर जाम लगने का यह एक बड़ा कारण हैं। वहीं शहरों की तरफ मेस्टन रोडबड़ा चौराहा जैसे रास्तों पर जाम की समस्या अधिक बनी रहती है। 


जाम के मुख्य कारण -

जाम की बढ़ती समस्या के बहुत से मुख्य कारण हैं। जिनकी वजह से यह समस्या एक बड़ा रूप लेती जा रही है। जाम लगने का सबसे प्रमुख कारण अतिक्रमण है। शहर के लगभग हर रास्तों पर सब्जी मंडी देखने को मिलती है। वहीं रास्तों के किनारे-किनारे यह लोग सब्जी व फलों के ठेले लगाएं मिलते हैं। इनके ठेले लगभग आधे रास्ते को घेर लेते हैं और इसी कारण रोड पर कम जगह बचती है। इसीलिए ऐसी जगहों पर लोगों को जाम की परेशानी झेलनी पड़ती है। अतिक्रमण की बात करें तो यह इतना ज्यादा है कि लोग फुटपाथ को भी नहीं छोड़ते हैं।


जाम लगने का एक कारण पार्किंग की समस्या भी है। शहर में कई इलाके ऐसे हैं जहां पार्किंग की कोई भी सुविधा नहीं है। जैसे गुमटी नंबर 5 को ही ले लीजिए। यह एक बड़ी बाज़ार हैयहां बहुत सी बड़ी बड़ी दुकानें हैंलेकिन उनके बाहर पार्किंग को लेकर कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए  हैं। इसीलिए यहां पर अक्सर जाम लगता है।


इसका एक कारण लोगों की लापरवाही भी है। चाहें पुलिस हो या स्थानीय लोग दोनों ही इस समस्या के बढ़ने का कारण है। रास्तों पर अक्सर ही ट्रैफिक पुलिस की लापरवाही दिखती है। वहीं कई जगहों पर ट्रैफिक पुलिस होती ही नहीं है। साथ ही रास्ते पर आने जाने वाले लोग भी इतनी जल्दबाजी में कि अक्सर ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करते पाए जाते हैं। वह तो बस जल्द से जल्द वहां से बाहर निकलने के चक्कर में पड़े रहते हैं। वहीं प्रशासन भी इस समस्या से अनजान नहीं है, लेकिन फिर भी वह सोता रहता है।

रास्तों पर बढ़ते जाम का एक कारण बढ़ते ई-रिक्शाऑटो रिक्शा और टेंपो भी हैं। अक्सर इनके चालकों को नियमों का उल्लंघन करते पाया जाता है। रिक्शा व टेंपो चालक वाहनों को कहीं से भी निकालने का प्रयास करते हैं। फिर चागें वह खुद ही फंस जाएं। वह यह भी नहीं देखते हैं कि जिस तरह से वह निकलने की कोशिश कर रहे हैं उनके कारण अन्य लोगों को परेशानी होती है।


जाम की समस्या तो बहुत बड़ी है, इसका एक कारण बिगड़ा यातायात भी है।  इसके सुधार के लिए पुख्ता कदम उठाए जाना बहुत जरूरी है। इससे निपटने के लिए यातायात नियमों का सही से पालन होना बहुत जरूरी है।

क्या – क्या उपाय किए गए

यातायात के सुधार के लिए इंटीग्रेटेड ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम (आईटीएमएस) बनाया गया था। इनकी शुरूआत मार्च में होनी थी। इसके लिए कई बैठकें की गई लेकिन उनका कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला। खराब नेटवर्क की वजह से सिस्टम अब बस शोपीस बने खड़े हैं।  



यातायात में सुधार करने व उसका उल्लंघन रोकने के लिए केडीए ने 12 चौराहों पर पीटूजेड कैमरे और दो जगह रेड लाइट वॉयलेशन डिटेक्टर कैमरा लगाए थे। इनकी मदद से ट्रैफिक सिग्नल तोड़ने वालों के घर आटोमेटिक जेनरेट चालान पहुंच जाएंगे। वॉयस मैसेज की व्यवस्था भी हैजिससे कहीं जाम या किसी वाहन के भागने पर उसके अगले चौराहे पर पकड़ने के लिए आगे की पुलिस को अलर्ट किया जा सकेगा। बीएसएनएल ने ब्रॉडबैंड के जरिए कैमरों को यातायात भवन के पास बने कंट्रोल रूम से जोड़ दिया हैलेकिन खराब नेटवर्क के चलते दिक्कत आ रही है। इसके साथ ही कई कैमरों व सेंसर की नेटवर्किग नहीं हुई है।


      यदि इन सभी समस्याओं को हल कर दिया जाए तो जाम की इस बड़ी समस्या से निजात पाई जा सकती है। इसके लिए जहां प्रशासन का सक्रिय होना जरूरी है, तो वहीं शहर वासियों का जागरूक होना भी उतना ही जरूरी है। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो लोगों को ऐसे ही इस समस्या से जूझना पड़ेगा। 








डाटा चोरी एक बड़ा खतरा


डाटा चोरी से हो रही चुनावी धांधली, लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा



फेसबुक से डाटा चोरी होने के समाचार ने  फेसबुक यूजर्स में सनसनी फैलाने के साथ ही फेसबुक प्रोफाइल की गोपनीयता पर भी सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। डाटा की चोरी से चुनावी धांधली की भी आशंका व्यक्त की जा रही है। इस मामले में ब्रिटेन की कंपनी ''कैंब्रिज एनालिटिका '' (सीए) पर आरोप लगा है कि वह फेसबुक के जरिये डाटा चोरी का काम करती है। जिसके माध्यम से  वह चुनाव में लोगों के विचारों को प्रभावित करते हैं।

 कंपनी के पूर्व रिसर्च प्रमुख क्रिस्टोफर वाइली ने  ब्रिटेन की एक संसदीय समिति के समक्ष स्वीकार किया है कि सीए के ग्राहक भारत के राजनीतिक दल भी हैं , जिनमें कांग्रेस भी शामिल हैउन्होंने दावा किया है कि कंपनी  के पास भारत के हर गांव का डाटा है। वाइली के इस बयान ने भारत की चुनावी प्रक्रिया के साथ खिलवाड़ होने के संकेत भी दिए हैं। इसमें कोई दोराय नहीं कि यह देश के लोकतंत्र के लिए एक बड़ा खतरा है।

 आज दुनिया भर में संचार तकनीक के जानकार लगभग लोग फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं। डाटा चोरी होने की खबर से वे आश्चर्यचकित हैं और उनके  विश्वास को भी झटका लगा है। तकनीकी ने मनुष्य के जीवन को सरल बना दिया है। बढ़ती तकनीकियों से बहुत सारी मुश्किलें आसान हो गई हैं। जहां मशीनों के उपयोग से लोगों का समय बचता है, वहीं सोशल मीडिया से संचार प्रक्रिया भी तेज हुई है।

फेस बुक एक ऐसा संचार माध्यम है जिसने देश और विदेशों के बीच की दूरियों को कम करने का काम किया है। व्हाट्सएप्प, , इंस्टाग्राम आदि इसके प्रसिद्ध उदाहरण हैं। आज के समय में फेसबुक जहां लोगों के मनोरंजन का कारण है वहीं लोगों के लिए यह जानकारी हासिल करने का भी माध्यम बना हुआ है। लोग फेसबुक के संबंधित एप्स का इस्तेमाल करते हैं जिन्हें डाउनलोड करने के लिए वह अपनी निजी जानकारियां साझा करते हैं। लेकिन वह इस बात से अंजान हैं कि फेसबुक से मिली सुविधा जहां उनके लिए फायदेमंद है वहीं यह उनका नुक्सान भी कर सकती है।

क्या है डाटा चोरी मामला ?
  
फेसबुक से डाटा चोरी होने के मामले ने तब तूल पकड़ा जब यह पता चला कि 2016 में अमेरिकी चुनाव में, फेसबुक के पांच करोड़ यूजरों के डाटा से मिली जानकारी  का इस्तेमाल  डोनाल्ड ट्रंप को जिताने के लिए  किया गया है। उन जानकारियों के जरिये लोगों के विचारों को प्रभावित किया गया था। इस बात के सामने आने के बाद अमेरिकी  ग्राहकों के हितों की रक्षा से जुड़ी एजेंसी 'फेडरल ट्रेड कमीशन' ने फेसबुक के खिलाफ जांच शुरू की है। साथ ही ब्रिटेन और यूरोपीय कमीशन में भी फेसबुक के खिलाफ जांच शुरू की गई है।

कैसे डाटा चोरी किया गया ?

कैंब्रिज एनालिटिका ने डाटा चोरी का काम एक अन्य कंपनी 'ग्लोबल साइंस रिसर्च' (जीएसआर) की एक एप के जरिए किया था। ग्लोबल साइंस रिसर्च ने 'दिस इज योर डिजिटल लाइफ ' नाम के एक एप को प्रस्तुत किया । यह एक पर्सनॉलिटी क्विज एप थी। इस एप को 2.70 लाख लोगों ने डाउनलोड किया था। इस ऐप को डाउनलोड करते ही फेसबुक यूजर्स के डाटा स्वत: कैंब्रिज एनालिटिका कंपनी तक पहुंच जाते थे। कैंब्रिज एनालिटिका डाटा का उपयोग संबंधित देश के नागरिकों के व्यवहार, उनकी पसंद-नापसंद को समझने के लिए करती थी।  इसका अध्ययन करने के बाद वह इसकी जानकारी अपने ग्राहक राजनीतिक दलों को देती थी। जिसके आधार पर वह दल अपनी चुनावी रणनीति तैयार करते हैं।

  सोशल मीडिया से डाटा चोरी करने का काम लोगों की राजनीतिक पसंद-नापसंद को जानने के लिए किया जाता है। राजनीतिक दल लोगों कि पसंद नापसंद को जानकर अपनी चुनावी रणनीति तैयार करते हैं। फिर उसी के जरिये सुनियोजित अभियान चलाकर लोगों की सोच को, विचारों को प्रभावित करने का काम करते हैं। यदि  ऐसा है  तो निश्चित ही  यह लोकतंत्र के लिए एक बड़ा खतरा है। इसके लिए समय रहते उचित कदम उठाने की जरूरत है जिससे कि फेसबुक पर लोगों के खोए हुए विश्वास को वापस कायम किया जा सके।

कैंब्रिज एनालिटिका का इंडिया कनेक्शन ?

भारत में कैंब्रिज एनालिटिका की सहयोगी कंपनी 'ओवलेने बिजनेस इंटेलिजेंस' (ओबीआई) है। इस कंपनी से जेडीयू नेता केसी त्यागी के बेटे अमरीश त्यागी जुड़े हुए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कंपनी की वेबसाइट पर क्लाइंट के तौर पर बीजेपी,  कांग्रेस और जेडीयू का जिक्र भी दिया गया है। लेकिन जब कैंब्रिज एनालिटिका पर आरोप लगे तो इस साइट को भी ब्लॉक कर दिया गया। । साथ ही यह भी पता चला कि कैंब्रिज एनालिटिका भारत में स्ट्रैटजिक कम्यूनिकेशंस लेबोरेटरी (एससीएल) के जरिये सक्रिय थी। एससीएल की पैरेंट कंपनी कैंब्रिज एनालिटिका ही थी। सूत्रों के अनुसार 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी और जेडीयू ने ओवलेनो बिज़नेस इंटेलिजेंस की मदद ली थी। कंपनी का दावा था कि जहां-जहां टारगेट किया गया उसमें से 90 फ़ीसदी सीट पर जीत मिली थी। इस चुनाव में बीजेपी-जेडीयू गठबंधन की जीत हुई थी। ऐसे ही 2012 में एससीएल ने एक राष्ट्रीय पार्टी के लिए जातिगत सर्वे व बदलने वाले वोटरों के व्यवहार का विश्लेषण किया था।


विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद  की फेसबुक को चेतावनी

फेसबुक से चुनावी धांधली की आशंका के बाद रविशंकर प्रसाद ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा है कि यदि देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया से छेड़छाड़ हुई तो सख्त कार्रवाई की जाएगी। साथ ही उन्होंने इससे जुड़ी कोई भी शिकायत आने पर जरूरी कदम उठाने के संकेत भी दिए हैं।
  रविशंकर प्रसाद ने फेसबुक को चेतावनी दी है कि वह भारतीय कानून को हल्के में ना लें। उन्होंने कंपनी के सीईओ मार्क जुकरबर्ग को समन भेजकर भारत बुलाने की धमकी भी दी । साथ ही उन्होंने कहा कि सोशल साइट्स के ग्राहकों के हितों की रक्षा को लेकर जो नियम कानून हैं उनकी नए सिरे से समीक्षा की जाएगी और यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि सोशल मीडिया साइट्स भारत में भारतीय कानूनों के हिसाब से ही चलें।

डाटा चोरी पर मार्क जुकरबर्ग ने मांफी मांगी

डाटा चोरी होने के मामले में फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने माफी मांगी है,  उन्होंने कहा है कि लोगों के विश्वास के साथ जो खिलवाड़ हुआ है, वह उसके लिए बेहद शर्मिंदा हैं। अपनी गलती को स्वीकारते हुए उन्होंने ग्राहकों से जुड़ी जानकारी की सुरक्षा के लिए जरूरी कदम उठाने  की बात भी कही है। जुकरबर्ग ने बताया कि डाटा चोरी से निपटने के लिए फेसबुक उन सभी एप्स की पड़ताल करेगा जिनके पास बड़े पैमाने पर लोगों की जानकारी मौजूद है। साथ ही यह भी कहा है कि यदि कोई डेवलपर निजी जानकारी से छेड़छाड़ करता पाया गया तो, उसे आजीवन बैन कर दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि फेसबुक पर ग्राहकों के लॉग-इन करने के तौर-तरीकों में भी बदलाव किया जा रहा है।

   सोशल मीडिया से डाटा चोरी कर चुनावी प्रक्रिया के साथ छेड़छाड़ को रोकने के लिए समय रहते उचित कदम उठाने की जरूरत है । जिससे लोकतांत्रिक व्यवस्था पर लोगों का विश्वास बना रहे। साथ ही इसका ध्यान दिया जाना भी जरूरी है कि भविष्य में ऐसी परिस्थितयां दोबारा न उत्पन्न होने पाएं।




शहर की छोटी बाजारें भी होली के रंग में रंगी

शहर की छोटी बाजारें भी होली के रंग में रंगी

कानपुर : त्यौहार करीब आने के साथ ही बजारें  भी होली के रंगों में रंगी नजर आने लगी हैं। शहर की बड़ी बाजारों से लेकर छोटी-छोटी दुकानों में भी होली के सामान की बिक्री शुरू हो चुकी है। बाजार में त्यौहार के रंग बिखरे दिखने लगे हैं।

 वैसे तो होली के त्यौहार पर शहर की बड़ी बाजारें काफी रंगीन नजर आती हैं, वहीं आवास विकास हंसपुरम की दूसरी पुलिया की छोटी सी बाजार में भी होली की बिक्री जोरों पर है। दुकानों में जहां  पापड़, चिप्सफ्राइज़  व अन्य खाद्य पदार्थों के स्टाल्स लगे हुए हैं वहीं रंग, पिचकारी के  स्टाल्स भी सजते नजर आने लगे हैं। पुलिया पर मौजूद गुप्ता किराना स्टोर में इस बार पैक्ड पापड़, चिप्स के साथ साथ घर पर बने पापड़ चिप्स भी स्टाल पर देखने को मिले। दुकान के मालिक का मानना है कि लोग बाजारी पदार्थों के अपेक्षा घरेलू तौर पर बने पापड़, चिप्स व अन्य खाद्य पदार्थों को खरीदना अधिक पसंद करते हैं और सेहत के लिए भी यह अच्छे होते हैं। इसीलिए उन्होंने घर की बनी चीजों पर भी ध्यान दिया है और वह अपनी बिक्री से भी संतुष्ट हैं। साथ ही उन्होंने बताया कि उन्होंने आलू के पापड़ में काफी तरह की वैरायटी रखी हुई है। जिनमें प्लेन आलू पापड़, लहसुन आलू पापड़,  धनिया-मिर्च आलू पापड़, चावल के पापड़, चिली राइस पापड़ व खाने की और भी पकवान मौजूद हैं।

वहीं पुलिया पर मौजूद अन्य दुकानों में भी होली के स्टाल लगने लगे हैं। गुड़िया कॉस्मेटिक एंड गिफ्ट सेंटर में पिचकारी, रंग व गुलाल के स्टाल सज गए हैं। दुकानदार ने रंग व गुलाल को लेकर खास ख्याल रखा है कि वह हानिकारक रंग न हो।

पापड़, चिप्स से सजी छतें

कानपुर : होली के त्यौहार की शुरुआत घरों में पापड़, चिप्स बनने से ही शुरु होती है। महिलाएं पहले से ही पापड़, चिप्स बनाने की तैयारियों में लग जाती हैं । पहले वह पापड़ बनाती हैं फिर उन्हें छतों पर सुखाने का काम करती हैं। उनका मानना होता हे कि त्यौहार का मजा उसकी तैयारियों में ही है।

सब्जी मंडी में सजे आलू

पापड़ बनाने के लिए हफ्तों पहले से ही महिलाओं की खरीदारी शुरू हो जाती है। पापड़, चिप्स बनने में तो असल कमाल आलू का ही होता है। वहीं सब्जी मंडी में भी तरह तरह के आलू की वैरायटी जैसे कि चिप्सोना आलू, सोना आलू, देशी आलू आदि मिलने लगते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं को मिली तोहफों की सौगात

दिल्ली : अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एक ऐसा दिवस है जिस दिन हर महिला को अपने महिला होने पर गर्व होता है। वहीं इस बार अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं की सुरक्षा, रोजगार व प्रगति को मद्देनजर रखते हुए उन्हें कई तोहफों की सौगात मिली। कहीं उनके लिए ऑल वुमेन पेट्रोलियम स्क्वायड की शुरुआत की गई तो कहीं इंटरप्रेन्योरशिप बढ़ाने के लिए उन्हें प्लेटफार्म देने का प्रस्ताव रखा गया।

महिला दिवस के खास मौके पर दिल्ली में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों से निपटने के लिए दिल्ली पुलिस ने ''ऑल वुमेन पेट्रोलियम स्क्वायड '' की शुरुआत की है। इस स्क्वायड में ड्राइवर से लेकर इंचार्ज तक सब महिलाएं होंगी। स्क्वायड की कमान पूर्णत: महिलाओं को सौंपी गई है। यह स्क्वायड रोज रात को सुनसान रास्तों पर बाइकों से पेट्रोलिंग करेंगी। इसके लिए इन्हें बाइक चलाने व आत्मरक्षा के लिए स्पेशल ट्रेनिंग दी गई है। स्क्वायड को अधिक सुनसान रास्तों पर ज्यादा ध्यान देने के लिए कहा गया है साथ ही किसी भी संदिग्ध व्यकित से पूछताछ करने के आदेश दिए गए हैं। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ''बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ'' मिशन को पूरे देश में लागू कर दिया है। महिला इंटरप्रेन्योरशिप को बढ़ाने के लिए नीति आयोग ने ''वूमेन एंटरप्रेन्योरशिप प्लेटफार्म'' लांच किया है। इससे महिलाओं को अपने आईडिया को बिजनेस में तब्दील करने में मदद मिलेगी।  इसके जरिए उन्हें बिजनेस स्टार्ट करने की सही जानकारी, इंडस्ट्री ट्रेनिंग दी जाएगी और साथ ही बिजनेस के लिए फंडिंग की मदद भी दी जाएगी । वहीं अगर उपलब्धी की बात करें तो पहली बार विमान कंपनी स्पाइसजेट ने 45 महिला पायलटों को नियुक्त कर महिला पायलटों के चयन का रिकॉर्ड बनाया। 

महिला दिवस के मौके पर मिले तोहफे जहां महिलाओं की सुरक्षा व प्रगति में मददगार होगा वहीं इनसे उनके अंदर आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।


जिंदगी के अनमोल रिश्ते

जन्म होते ही बनते रिश्ते जिंदगी के अनमोल रिश्ते पालने में झुलता बचपन नए रिश्ते संजोता बचपन औलाद बनकर जन्म लिया संग कई रिश्तों को जन्म द...